Friday 25 January 2013

फिर भी चाहती हूँ जीना, माँ!


इस बार एक नवोदित युवा कवि सूर्यकान्त साहू की एक कविता "फिर भी जीना चाहती हूँ, माँ!" प्रस्तुत है। 

सूर्यकान्त साहू का जन्म 23 फरवरी 1989 को बालोद (छत्तीसगढ़) में हुआ था। 
माता का नाम बेलाबाई और पिता का नाम राधेश्याम साहू। वे वर्तमान में भिलाई (छत्तीसगढ़) में एम. सी. ए. की पढ़ाई कर रहे हैं। उनका वर्तमान निवास है : सरगीपालपारा, कोंडागाँव 494226। उनसे उनके मोबाइल 88179 47387 पर सम्पर्क किया जा सकता है। 

लेखन के विषय में वे कहते हैं, "मैं 10 वीं कक्षा में था तब से कलम पकड़ने की कोशिश कर रहा हूँ। इसे मैं लिखना नहीं कहता। मैं तो केवल अपने भाव व्यक्त कर रहा हूँ।" सूर्यकान्त लिखने के साथ-साथ संगीत में भी रुचि रखते हैं। प्रस्तुत है उनकी कविता : 


फिर भी चाहती हूँ जीना, माँ!


सूर्यकान्त साहू 


थम रही हैं साँसें मेरी 
फिर भी चाहती हूँ जीना, माँ
आँखें हो गयी हैं नम
फिर भी चाहती हूँ जीना, माँ

धड़कनें छोड़ रही हैं साथ
फिर भी
ज़िंदगी के इस बेबस मंजर पर
पहुँच कर भी चाहती हूँ जीना, माँ

अभी भी कुछ कर गुजर 
चाहती हूँ आगे बढ़ना, माँ
इन हैवानों को अभी मैं
चाहती हूँ सबक सिखाना, माँ

जो मेरी आबरू को नंगा कर
घूम रहे हैं खुले आम
उनके झूठ के नकाब उतार 
उनके काले-घिनौने सच को
सामने चाहती हूँ लाना, माँ

अभी तो कुछ कर गुजर कर
आगे चाहती हूँ बढ़ना, माँ

सपने तो अब भी बुन रही हूँ
मंज़िल की राहों पर मैं
अब भी आगे बढ़ रही हूँ
पर साँसें नहीं दे रही हैं मेरा साथ
ज़िंदगी से फिर भी लड़ रही हूँ, माँ

दिन ढल रहा है
फिर भी मेरे मन में
अभी सूरज ऊग रहा है, माँ
फिर भी चाहती हूँ जीना, माँ! 





1 comment:

  1. भावपूर्ण रचना। कविता की दृष्टि से शिल्प में परिमार्जन की आवश्यकता है।

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