बस्तर के साहित्यकार
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हरिहर वैष्णव
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बस्तर में साहित्य-सृजन का सूत्रपात 1908 में प्रकाशित पं. केदार नाथ ठाकुर के बहुचर्चित ग्रन्थ "बस्तर -भूषण" के साथ माना जाता है। इसके पूर्व इस अंचल में साहित्य-सृजन का कोई उल्लेख कहीं नहीं मिलता। "बस्तर-भूषण" के लेखक पं. केदार नाथ ठाकुर (जगदलपुर) पेशे से बस्तर स्टेट के नार्दर्न सर्किल में फारेस्ट रेंजर हुआ करते थे। उन्होंने शासकीय कार्य निष्पादन के लिये अपने क्षेत्रीय भ्रमण के दौरान जो कुछ देखा-सुना और अनुभव किया उसे लेखबद्ध कर "बस्तर भूषण" शीर्षक से ग्रन्थ का प्रणयन किया। "बस्तर भूषण" के अतिरिक्त उन्होंने "सत्यनारायण कथा", "बसन्त विनोद" की भी रचना की और बाद में इन दोनों पुस्तकों को "केदार विनोद" नामक अपनी अन्य पुस्तक में संग्रहित किया। "बस्तर विनोद" और "विपिन विज्ञान" उनकी अन्य पुस्तकें है, किन्तु ये उपलब्ध नहीं हैं । बस्तर के विषय में हिन्दी में सर्वप्रथम लगभग सम्पूर्ण जानकारी देने वाले इस ग्रन्थ "बस्तर-भूषण" की चर्चा तब भी हुई थी और आज भी यह चर्चित बना हुआ है। आज भी लोग इसे खोजते फिरते हैं।
चर्चा लाल कालीन्द्र सिंह (जगदलपुर) द्वारा लिखित "बस्तर-भूषण" नामक ग्रन्थ की भी होती है किन्तु इसकी प्रति उपलब्ध नहीं है। कहा जाता है कि यह तत्कालीन रियासती प्रशासन की दृष्टि में आपत्तिजनक होने के कारण जब्त कर लिया गया था, जिससे उसका मुद्रण-प्रकाशन सम्भव नहीं हो सका। लाल कालीन्द्र सिंह रचित "बस्तर इतिहास" का भी उल्लेख मिलता है, जिसे उन्होंने 1908 में लिखा था। किन्तु यह ग्रन्थ भी उपलब्ध नहीं है । बस्तर महाराजा प्रवीरचन्द्र भंजदेव ने "लोहण्डीगुड़ा तरंगिणी" तथा अंग्रेजी में "आई प्रवीर द आदिवासी गॉड" लिखी। पं. सुन्दरलाल त्रिपाठी (जगदलपुर) ने क्लिष्ट हिन्दी में रचनाएँ लिखीं।
इनके पश्चात् पं. गंगाधर सामन्त "बाल" (जगदलपुर) द्वारा रचित साहित्य स्थान पाता है। द्विवेदी युग में पण्डित जी की रचनाएँ "कर्मवीर", "विद्या", "राजस्थान केशरी", "विद्यार्थी", "सत्यसेतु" "काव्य-कौमुदी" और "विश्वमित्र" जैसे स्तरीय पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होती रहीं। इसके अलावा आप रियासत कालीन बस्तर के एकमात्र साप्ताहिक "बस्तर-समाचार" में "पंचामृत" शीर्षक स्तम्भ के स्तम्भ-लेखक थे। उनकी प्रकाशित कृतियों में "अभिषेकोत्सव", "शोकोद्गार", "प्राचीन कलिंग खारवेल", "तत्वमुद्रा धारण निर्णय" "रमलप्रश्न प्रकाशिका" और "गीता का पद्यानुवाद" का उल्लेख मिलता है ।
साहित्य-सृजन के इस क्रम को आगे बढ़ाया था ठाकुर पूरनसिंह (जगदलपुर) ने। उन्होंने हिन्दी में "बस्तर की झाँकी", और "पूरन दोहावली", तथा हल्बी में "भारत माता चो कहनी" और "छेरता तारा गीत" शीर्षक पुस्तकों की रचना की थी। 1937 में प्रकाशित "हल्बी भाषा-बोध" राजकीय अमले को हल्बी भाषा सिखाने के लिये लिखी गयी उनकी पुस्तक थी। ठाकुर पूरन सिंह को बस्तर की हल्बी लोक भाषा में लिखित साहित्य की रचना करने वाले प्रथम साहित्यकार होने का श्रेय जाता है। वे ही हल्बी के प्रथम गीतकार भी थे। उन्हीं के सहयोग से मेजर आर. के. एम. बेट्टी ने 1945 में "ए हल्बी ग्रामर" की रचना की थी। इसी क्रम में पं. गणेश प्रसाद सामन्त (जगदलपुर) ने "देबी पाठ" नामक एक पद्य पुस्तिका रची थी। 1950 में पं. गंभीर नाथ पाणिग्राही (जगदलपुर) रचित कविता-संग्रह "गजामूँग" प्रकाशित हुआ था। पं. वनमाली कृष्ण दाश (जगदलपुर) ने भी साहित्य-सृजन किया था किन्तु उनकी किसी प्रकाशित पुस्तक का उल्लेख नहीं मिलता । पं. देवीरत्न अवस्थी "करील" (गीदम) ने हिन्दी के साथ-साथ हल्बी में भी काव्य-रचना की। उनकी प्रकाशित कृतियाँ हैं "देवार्चन", "मधुपर्क", "लोकरीति" और "रघुवंश"। उनकी उत्तम साहित्य-साधना के लिये उन्हें हिन्दी साहित्य सम्मेलन, प्रयाग द्वारा "साहित्य-रत्न" की उपाधि से विभूषित किया गया था। इसी तरह महाकवि कालिदास की कृति "रघुवंश" के हिन्दी छन्दानुवाद के लिये साहित्य अकादमी, दिल्ली द्वारा पुरस्कृत किया गया था । 1960 के आसपास श्री अयोध्या दास वैष्णव (खोरखोसा, जगदलपुर) ने "चपकेश्वर महात्म्य" शीर्षक काव्य-पुस्तिका का प्रणयन किया था।
श्री लाला जगदलपुरी (जगदलपुर) ने साहित्य-साधना आरम्भ की 1936 से और उनकी रचनाएँ 1939 से ही प्रकाशित होने लगीं। उनकी प्रकाशित कृतियों में कविता एवं ग़ज़ल संग्रह "मिमियाती ज़िंदगी दहाड़ते परिवेश" (ग़ज़ल), "पड़ाव-5" (कविता), "हमसफ़र" (कविता) और "ज़िंदगी के लिये जूझती ग़ज़लें", "गीत-धन्वा" (मुक्तक एवं गीत संग्रह) तथा लोक कथा संग्रहों में "हल्बी लोक कथाएँ", "वनकुमार और अन्य लोक कथाएँ", "बस्तर की मौखिक कथाएँ" (हरिहर वैष्णव के साथ), "बस्तर की लोक कथाएँ" और इतिहास-संस्कृति विषयक "बस्तर : इतिहास एवं संस्कृति", "बस्तर-लोक (कला-संस्कृति प्रसंग)", तथा "बस्तर की लोकोक्तियाँ" हैं। उनके द्वारा हल्बी में अनूदित पुस्तकें हैं, "प्रेमचन्द चो बारा कहनी", "बुआ चो चिठी मन", "रामकथा" और "हल्बी पंचतन्त्र"। इसके अतिरिक्त उनकी अनेकानेक रचनाओं ने विभिन्न मिले-जुले संग्रहों में भी स्थान पाया है। इनमें "समवाय", "पूरी रंगत के साथ", "लहरें", "इन्द्रावती", "सापेक्ष", "हिन्दी का बाल गीत साहित्य", "सुराज", "चुने हुए बाल गीत", "छत्तीसगढ़ी काव्य संकलन", "छत्तीसगढ़ के माटी चंदन", "छत्तीसगढ़ी काव्य संग्रह", "गुलदस्ता" "स्वर संगम", "गीत हमारे कण्ठ तुम्हारे", "बाल गीत", "बाल गीत भाग-4", "बाल गीत भाग-5" "बाल गीत भाग-7", "हम चाकर रघुवीर के", "मध्य प्रदेश की लोक कथाएँ", "स्पन्दन", "चौमासा", और "अमृत काव्यम्" आदि प्रमुख हैं। इसके साथ ही उनकी विभिन्न रचनाएँ "वेंकटेश्वर समाचार", "चाँद" "विश्वमित्र", "सन्मार्ग", "पाञ्चजन्य", "मानवता", "कल्याण", "नवनीत", "कादम्बिनी", "नोंकझोंक", "रंग", "ठिठोली", "चौमासा", "रंगायन", "ककसाड़" आदि अन्य स्तरीय पत्र-पत्रिकाओं में स्थान पाती रही हैं।
सर्वश्री गुलशेर खाँ शानी (जगदलपुर), धनञ्जय वर्मा (जगदलपुर), लक्ष्मीचंद जैन (जगदलपुर), कृष्ण कुमार झा (जगदलपुर), सुरेन्द्र रावल (कोंडागाँव), चितरंजन रावल (कोंडागाँव), कृष्ण शुक्ल (जगदलपुर) आदि ने भी साहित्य-सृजन के क्षेत्र में कदम रखा और विभिन्न विधाओं में साहित्य-सृजन किया। शानी जी एक कथाकार-उपन्यासकार के रूप में स्थापित हुए जबकि डॉ. धनञ्जय वर्मा आलोचना के क्षेत्र में मील के पत्थर साबित हुए। शानीजी की रचनाओं में "बबूल की छाँव", "डाली नहीं फूलती", "छोटे घर का विद्रोह", "एक से मकानों का घर", "युद्ध", "शर्त का क्या हुआ", "मेरी प्रिय कहानियाँ", "बिरादरी", "सड़क पार करते हुए", "जहाँपनाह जंगल", "सब एक जगह", "पत्थरों में बंद आवाज", "कस्तूरी", "काला जल", "नदी और सीपियाँ", "साँप और सीढ़ी", "एक लड़की की डायरी", "शाल वनों का द्वीप" और "एक शहर में सपने बिकते हैं" प्रमुख हैं। डॉ. धनञ्जय वर्मा की प्रमुख प्रकाशित कृतियाँ हैं, "निराला : काव्य और व्यक्तित्व", "आस्वाद के धरातल", "निराला काव्य : पुनर्मूल्यांकन", "हस्तक्षेप", "आलोचना की रचना-यात्रा", "अँधेरे के वर्तुल", "आधुनिकता के बारे में तीन अध्याय", "आधुनिकता के प्रतिरूप", "समावेशी आधुनिकता", "हिन्दी कहानी का रचना शास्त्र", "हिन्दी कहानी का सफ़रनामा", "परिभाषित परसाई", "हिन्दी उपन्यास का पुनरावतरण", "आलोचना के सरोकार", "लेखक की आज़ादी" और "आलोचना की ज़रूरत"।
श्री रघुनाथ प्रसाद महापात्र (जगदलपुर) हल्बी-भतरी के बहुचर्चित कवि रहे थे। उनकी पुस्तक "फुटलो दसा, बिलई उपरे मुसा" ने बस्तर की सीमाएँ लाँघ कर ओड़िसा तक में धूम मचा दी थी। श्री लक्ष्मीचंद जैन और श्री चितरंजन रावल कविता के क्षेत्र में और श्री सुरेन्द्र रावल कविता तथा व्यंग्य के क्षेत्र में चर्चित रहे, वहीं श्री कृष्ण शुक्ल कहानीकार के रूप में अखिल भारतीय स्तर पर चर्चित हुए। श्री सुरेन्द्र रावल की प्रकाशित कृति है, "काव्य-यात्रा" जबकि श्री चितरंजन रावल की प्रकाशित कृति है, "कुचला हुआ सूरज"। डॉ. कृष्ण कुमार झा की कृतियाँ हैं, "स्कन्दगुप्त" और "सम्राट् समुद्रगुप्त"। बसन्त लाल झा (जगदलपुर) ने और नर्मदा प्रसाद श्रीवास्तव (जगदलपुर) ने भी साहित्य-सृजन में उल्लेखनीय योगदान दिया। मेहरुन्निसा परवेज (जगदलपुर) एक कथाकार-उपन्यासकार के रूप में उभरीं और उन्होंने अखिल भारतीय स्तर पर ख्याति प्राप्त की। श्री रऊफ परवेज (जगदलपुर) , श्री इशरत मीर (जगदलपुर), श्री हयात रजवी (कोंडागाँव), श्री पी. एल. कनवर (कोंडागाँव), श्री ओ. पी. शर्मा (कोंडागाँव) और श्री गनी आमीपुरी (जगदलपुर) ने अपनी साहित्य-साधना से उर्दू अदब की सेवा की। इसी तरह श्री हुकुमदास अचिंत्य (जगदलपुर) ने हिन्दी और छत्तीसगढ़ी में साहित्य-सृजन किया। श्री रामसिंह ठाकुर (नारायणपुर) ने हल्बी में कविताओं के साथ-साथ श्री रामचरित मानस को हल्बी में प्रस्तुत करने का उल्लेखनीय और स्तुत्य कार्य किया। हल्बी में सर्वश्रेष्ठ कविताएँ लिखीं श्री सोनसिंह पुजारी (बजावंड, जगदलपुर) ने। श्री पुजारी ने यद्यपि बहुत कम, कुल मिला कर 27 कविताएँ ही लिखीं किन्तु वे सभी चर्चित हुईं। इसी काल में श्री बहादुर लाल तिवारी (कवि एवं गद्यकार, काँकेर), रामेश्वर चौहान (व्यंग्यकार, काँकेर), जोगेन्द्र महापात्र "जोगी" (हल्बी-भतरी कवि, जगदलपुर), गोपाल सिम्हा (गीतकार, जगदलपुर), परमात्मा प्रसाद शुक्ल (हिन्दी एवं गोंडी कवि, जगदलपुर), गयाप्रसाद तिवारी (गोंडी कवि, नारायणपुर), लक्ष्मीनारायण "पयोधि" (कवि एवं कथाकार, भोपालपटनम), त्रिलोक महावर (कवि, जगदलपुर), अभिलाष दवे (कवि, जगदलपुर), मदन आचार्य (आलोचना, जगदलपुर), जगदीश वागर्थ (कथाकार, कोंडागाँव), योगेन्द्र मोतीवाला (नाटक, जगदलपुर), सुश्री नसीम रहमान (कवयित्री, जगदलपुर), यशवन्त गौतम (कवि, कोंडागाँव), हरिहर वैष्णव (कवि एवं कथाकार, कोंडागाँव), उर्मिला आचार्य (कथाकार, जगदलपुर) आदि ने भी साहित्य-सृजन के क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान किया। हरिहर वैष्णव की प्रकाशित कृतियाँ हैं, "बस्तर की मौखिक कथाएँ (लोक साहित्य : लाला जगदलपुरी के साथ)", "मोहभंग" (कहानी संग्रह), "राजा और बेलकन्या" (लोक साहित्य), "गुरुमायँ सुकदई द्वारा प्रस्तुत बस्तर की धान्य देवी की कथा : लछमी जगार" (लोक साहित्य : हल्बी-हिन्दी-अंग्रेजी, सी. ए. ग्रेगोरी के साथ), "बस्तर का लोक साहित्य" (लोक साहित्य), "बस्तर की गीति कथाएँ" (लोक साहित्य : हल्बी-हिन्दी), "गुरुमायँ केलमनी द्वारा प्रस्तुत बस्तर के नारी लोक की महागाथा : धनकुल" (लोक साहित्य : हल्बी-हिन्दी), "बस्तर के धनकुल गीत" (लोक साहित्य : शोध विनिबन्ध), "चलो, चलें बस्तर" (बाल साहित्य : पर्यटन), "बस्तर के तीज-त्यौहार" (बाल साहित्य)। इनकी प्रकाश्य कृतियाँ हैं, "आदिवासी महागाथा : तीजा जगार" (लोक साहित्य : हल्बी-हिन्दी), "आठे जगार" (लोक साहित्य : हल्बी-हिन्दी), "बाली जगार" (लोक साहित्य : देसया-हिन्दी), "बस्तर की लोक कथाएँ" (लोक साहित्य : बस्तर की 11 जनभाषाओं की लोक कथाएँ हिन्दी अनुवाद सहित, लाला जगदलपुरी के साथ), "सुमिन बाई बिसेन द्वारा प्रस्तुत छत्तीसगढ़ी लोक गाथा : धनकुल" (छत्तीसगढ़ी-हिन्दी), "बस्तर की आदिवासी एवं लोक हस्तशिल्प परम्परा" (लोक शिल्प), "बस्तर का आदिवासी एवं लोक संगीत" (लोक संगीत), "बस्तर के अक्षरादित्य : लाला जगदलपुरी" (लाला जगदलपुरी के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर केन्द्रित), "क्यों बेजुबान है आदिवासी" (रिपोर्ताज संग्रह), "बस्तर समग्र" (बस्तर की आदिवासी एवं लोक संस्कृति पर केन्द्रित), "सोनसाय का गुस्सा" (कहानी संग्रह), "जंगल में बैठक" (बाल एकांकी संग्रह), "मेरी बाल कविताएँ" (बाल कविताएँ)। लक्ष्मीनारायण "पयोधि" की अब तक कुल 29 कृतियाँ प्रकाशित हो चुकी हैं और 05 कृतियाँ प्रकाशनाधीन हैं। ये कृतियाँ हैं, "सोमारु" (कविता : हिन्दी, मराठी, अंग्रेजी), "आखेटकों के विरुद्ध" (कविता), "अन्त में बची कविता" (कविता), "चिन्तलनार से चिन्तलनार तक" (कविता), "गमक" (ग़ज़ल),"कन्दील में सूरज" (ग़ज़ल), "चुप्पियों का बयान" (ग़ज़ल), "अँधेरे के पार" (ग़ज़ल), "हर्षित है ब्रह्माण्ड" (गीत), "पुनरपि" (संचयन), "सम्बन्धों के एवज में" (कहानी), "ठिबरु" (बाल साहित्य), "सूरज के देश में" (बाल उपन्यास), "वनवासी क्रान्तिवीर" (बाल साहित्य), "अजब कहानी गजब कहानी" (बाल साहित्य), "लंगूरों के देश में" (बाल साहित्य), "अबाबील की सहेली" (बाल साहित्य), "घोंसला बोला" (बाल साहित्य), "आदिवासी क्रान्ति नायक" (बाल साहित्य : कहानियाँ), "तितलीपरी" (बाल साहित्य : नाटक), "ऊँचे रखें इरादे" (बाल साहित्य), "उत्तर बन जायें" (बाल साहित्य : कविता), "गोंड जनजाति का सांस्कृतिक अध्ययन" (शोध : डिंडौरी जिला), "मानव विकास प्रतिवेदन" (शोध : डिंडौरी जिला), "भील जनजाति समूह का प्रतीकवाद" (शोध), "जनजातीय गोदना : सांस्कृतिक अध्ययन" (शोध), "भीली-हिन्दी" (शब्दकोश), "गोंडी-हिन्दी" (शब्दकोश), "कोरकू-हिन्दी" (शब्दकोश)। इनकी प्रकाश्य कृतियाँ हैं, "गुण्डाधूर", "गोन्ची", "रामबोला" (नाटक), "अन्तिम महायुद्ध" (कहानियाँ), "महूफूल" (उपन्यास)। इनके अतिरिक्त उल्लेखनीय साहित्य-सेवियों में स्व. जॉन वेलेजली "चिराग़" (हल्बी एवं हिन्दी कवि, कोंडागाँव), श्री शीतल राम कोर्राम (हल्बी कवि, कोंडागाँव), सर्वश्री सुरेश चन्द्र श्रीवास्तव, शिवसिंह भदौरिया, डॉ. कौशलेन्द्र (कवि, काँकेर), विजय सिंह (कवि एवं रंगकर्मी, जगदलपुर), शिवकुमार पाण्डेय (कवि, नारायणपुर), डॉ. सतीश (पर्यटन लेखक, जगदलपुर), नूर जगदलपुरी (शायर, जगदलपुर), अशोक "चक्र" (छत्तीसगढ़ी कवि, लारगाँव-काँकेर), गणेश यदु (छत्तीसगढ़ी कवि, सम्बलपुर-अन्तागढ़), हिमांशु शेखर झा (लेखक, जगदलपुर), सुभाष पाण्डे (व्यंग्यकार एवं रंगकर्मी, जगदलपुर), योगेन्द्र मोतीवाला (नाटक, जगदलपुर), अवध किशोर शर्मा (कवि, जगदलपुर), राजिन्दर राज (कवि, चारामा), राजेन्द्र श्रीवास्तव "शिरीष" (व्यंग्य कवि, काँकेर), डॉ. सुरेश तिवारी (कवि, तोकापाल-जगदलपुर), राजेन्द्र राठौर (कथाकार, काँकेर), लक्ष्मण गावड़े (कवि, काँकेर), अनुपम जोफर (कवि, काँकेर), प्रेमदास "डंडा काँकेरी" (कवि, काँकेर), इस्माईल जगदलपुरी (कवि, जगदलपुर), पूर्णानन्द "करेश" (कवि, काँकेर), डॉ. कौशलेन्द्र (कवि, काँकेर), बलदेव पात्र (कवि, अन्तागढ़), घनश्याम नाग (हल्बी-हिन्दी कवि, बहीगाँव), उग्रेश मरकाम (हल्बी-गोंडी कवि, कोंडागाँव), बुधेश्वर बघेल (हल्बी कवि, कोंडागाँव), सुश्री मधु तिवारी (कवयित्री, कोंडागाँव) योगेन्द्र देवांगन (कवि एवं व्यंग्यकार, कोंडागाँव), के. एल. श्रीवास्तव (कथाकार, जगदलपुर), केशव पटेल (छत्तीसगढ़ी गीतकार, कोंडागाँव), मनोहर "जख़्मी" (कवि, कोंडागाँव), उमेश मण्डावी (कवि, कोंडागाँव), सी. एल. मार्कण्डेय (छत्तीसगढ़ी गीतकार), हरेन्द्र यादव (कवि, कोंडागाँव), सुश्री बरखा भाटिया (कवयित्री, कोंडागाँव) नरेन्द्र पाढ़ी (कवि एवं रंगकर्मी, जगदलपुर), रुद्रनारायण पाणिग्राही (कवि एवं रंगकर्मी, जगदलपुर), बिक्रम सोनी (कवि एवं रंगकर्मी, जगदलपुर), दादा जोकाल (गोंडी एवं हल्बी कवि, गीदम), डुमन लाल ध्रुव (छत्तीसगढ़ी एवं हिन्दी कवि एवं लेखक), अवधेश अवस्थी (कवि, गीदम) आदि के नाम आते हैं। विजय सिंह की प्रकाशित कृति है, "बंद टाकीज"। इसी तरह के. एल. श्रीवास्तव की प्रकाशित कृतियाँ हैं, "दर्पण", "जगतूगुड़ा की विकास-यात्रा", "कबरी", "दरार", "सहारा", "सफर", "श्वान सम्मेलन" और "आत्म-बोध"। योगेन्द्र देवांगन की 3 कृतियाँ प्रकाशित हैं, "जिसकी लाठी उसकी भैंस", "दौरों का दौरा" और "बात की बात"। राजीव रंजन प्रसाद (बचेली) का उपन्यास "आमचो बस्तर" हाल ही में प्रकाशित हुआ है।
उपर्युक्त साहित्यकारों में से बहुतों की कृतियाँ प्रकाशित हुई होंगी किन्तु मेरी जानकारी में नहीं होने के कारण उनका उल्लेख करना सम्भव नहीं हो पाया है। मैं अपने अल्प ज्ञान के लिये उनसे क्षमा-प्रार्थी हूँ। और उन साहित्यकारों से भी क्षमा-याचना करता हूँ जिनका उल्लेख इस आलेख में अज्ञानता अथवा जल्दबाजी के कारण नहीं किया जा सका है।
जिन साहित्यकारों ने बस्तर में कुछ वर्ष बिताते हुए साहित्य-साधना की है उनमें रसिक लाल परमार (कवि), मनीषराय (कथाकार, कवि), ब्रह्मासिंह भदौरिया (गीतकार), राघवेन्द्र ईटिगी (तेलुगू कवि), अभय कुमार पाढ़ी (ओड़िया कवि), जब्बार ढाँकवाला (व्यंग्यकार), शंशाक (कथाकार), हृषीकेश सुलभ (कथाकार), हबीब राहत "हुबाब" (शायर), रमेश अनुपम (कवि एवं समीक्षक), संजीव बख्शी (कवि), तिलक पटेल (कवि), डॉ. देवेन्द्र "दीपक" (कवि), रमेश अधीर (गीतकार), त्रिजुगी कौशिक (कवि एवं छायाकार), राजुरकर राज (कवि) और रामराव वामनकर (कवि-गीतकार-गजलगो), राजेन्द्र गायकवाड़ (कवि) आदि के नाम याद आते हैं।