Tuesday, 12 March 2013

लोक साहित्य लोक जागरुकता का प्रतीक है : डॉ. कौशलेन्द्र मिश्र


"बस्तर का लोक साहित्य यहाँ के आम लोगों के संघर्ष, मान्यताओं एवं समृद्ध ज्ञान का प्रतीक है। लिपि के विकास के बहुत पहले से ही यहाँ की बोलियों में तमिल, राजस्थानी, अरबी और कई अन्य भाषाओं के प्रभाव शामिल हो गये थे।" ये उद्गार व्यक्त किये डॉ. कौशलेन्द्र मिश्र ने, जो एक चिकित्साधिकारी व साहित्यानुरागी हैं। वे श्री लाला जगदलपुरी एवं हरिहर वैष्णव द्वारा सम्पादित एवं नेशनल बुक ट्रस्ट, इंडिया (मानव संसाधन विकास मंत्रालय, भारत सरकार) द्वारा प्रकाशित पुस्तक "बस्तर की लोक कथाएँ" के लोकार्पण अवसर पर पुस्तक की समीक्षा कर रहे थे। इस आयोजन में मुख्य अतिथि अंतर्राष्ट्रीय ख्यातिलब्ध शिल्पी डॉ. जयदेव बघेल और अध्यक्ष स्थानीय शिक्षाविद् टी. एस. ठाकुर थे। यह आयोजन नेशनल बुक ट्रस्ट ने छत्तीसगढ़ हिंदी साहित्य परिषद के सहयोग के किया था।


आगंतुकों का औपचारिक स्वागत करते हुए नेशनल बुक ट्रस्ट के संपादक पंकज चतुर्वेदी ने जानकारी दी कि उनका संस्थान पुस्तक पढ़ने की रुचि के उन्नयन के लिये किस तरह की गतिविधियों का आयोजन करता है। लोकार्पित पुस्तक पर समीक्षा प्रस्तुत करते हुए डॉ. कौशलेन्द्र मिश्र ने बताया कि अबुझमाड़ की लोक कथा रक्त-संबंधों में विवाह करने से उत्पन्न होने वाले विकारों की जिस तरह से जानकारी देती है, यह साक्ष्य है कि हमारी जनजातियों की मान्यताएँ बेहद पुरातन काल से वैज्ञानिक रही हैं। पुस्तक के संपादक हरिहर वैष्णव ने बताया कि किस तरह उन्होंने विभिन्न जनजातियों की लोक कथाओं को पहले रिकार्ड किया, फिर उन्हें लिखा, एक बार फिर वे उन्हीं बोलियों के लोगों के पास गये और उनका परिशोधन व अनुवाद उन्हीं की मदद से किया। बस्तर की लोक-संस्कृति तथा वाचिक परम्परा के संरक्षण, संवद्र्धन एवं विस्तार-कार्य के लिये उन्होंने अपनी सरकारी नौकरी से सेवानिवृत्ति भी ले ली।












इस अवसर पर बस्तर की पारम्परिक जड़ी-बूटी पद्धतियों को सहजने में लगे अंतर्राष्ट्रीय रूप से चर्चित वैज्ञानिक    डॉ. राजाराम त्रिपाठी ने बताया कि लोक संस्कृति के मामले में बस्तर दुनिया का सबसे धनी क्षेत्र है और यहाँ की रचनाएँ दुनिया की किसी भी भाषा में लिखे जा रहे सृजन से कमतर नहीं है। आयोजन के मुख्य अतिथि डॉ. जयदेव बघेल ने बताया कि किस तरह उनके पिताजी से सीखे पुश्तैनी ज्ञान को उन्होंने दुनिया भर में पहुँचाया। उन्होंने बताया कि बस्तर का शिल्प इंसान के जन्म से ले कर उसके अन्तिम संस्कार व उसके बाद भी कुछ ना कुछ अनिवार्य आकृतियाँ गढ़ता रहता है। कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे श्री टी. एस. ठाकुर ने इस आयोजन और पुस्तक के लिये नेशनल बुक ट्रस्ट के प्रति आभार व्यक्त करते हुए कहा कि भविष्य में भी ट्रस्ट इस आंचलिक क्षेत्र में अपनी गतिविधियों का आयोजन करता रहेगा। इस सत्र का संचालन पंकज चतुर्वेदी ने किया जबकि अंत में आभार ज्ञापन श्री सुरेन्द्र रावल ने किया।




भोजनावकाश के बाद आयोजन का दूसरा सत्र भी अपने में अनूठा था। इसमें हिंदी, उर्दू के साथ-साथ हल्बी, भतरी, छत्तीसगढ़ी और गोंडी आदि में रचनाओं का पाठ हुआ। जगदलपुर से आये रुद्रनारायण पाणिग्राही ने भतरी में मुर्गों की लड़ाई पर केन्द्रित अपनी व्यंग्य रचना "कुकड़ा गाली" प्रस्तुत की तो भतरी के ही दूसरे 

रचनाकार नरेन्द्र पाढ़ी (जगदलपुर) ने भी कुत्ता पालने पर अपनी व्यंग्य रचना "कुकुर स्वांग" से श्रोताओं का 
दिल जीत लिया। श्री हरेन्द्र यादव ने छत्तीसगढ़ी में एक छत्तीसगढ़ी लड़के से प्रणय-निवेदन कर रही विदेशी 
बाला के संवाद का हास्य अपनी रचना में पेश किया। आदिवासियों के चहुँमुखी शोषण को रेखांकित करती 
कविताएँ दुर्योधन मरकाम ने गोंडी में और यशवंत गौतम ने हल्बी में प्रस्तुत की। हयात रजवी की उर्दू शायरी ने खूब वाहवाही लूटी। इसके अलावा शिवकुमार पाण्डेय (नारायणपुर) ने हल्बी में गीत और सुरेश चन्द्र 
श्रीवास्तव (काँकेर) ने हिन्दी में समकालीन कविताओं का पाठ किया। अभनपुर से पधारे सुप्रसिद्ध ब्लॉगर 
ललित शर्मा ने छत्तीसगढ़ी में अपनी व्यंग्य रचना "जय-जय-जय छत्तीसगढ़ महतारी" का पाठ किया। अपनी अस्वस्थता के कारण कार्यक्रम में उपस्थित न रह सकने वाले बस्तर के दो वरिष्ठ रचनाकारों लाला जगदलपुरी एवं सोनसिंह पुजारी की हिंदी एवं हल्बी रचनाओं का पाठ हरिहर वैष्णव ने आदर के साथ किया। इस सत्र का संचालन किया श्री सुरेन्द्र रावल ने।
 
इस कार्यक्रम में मनोहर सिंह सग्गू, महेश पाण्डे, महेन्द्र जैन, खीरेन्द्र यादव, जमील अहमद खान, शिप्रा त्रिपाठी, बरखा भाटिया, लच्छनदई नाग, मधु तिवारी, बृजेश तिवारी, रामेश्वर शर्मा, श्री विश्वकर्मा, पीतांबर दास वैष्णव, खेम वैष्णव, उमेश मण्डावी, चितरंजन रावल, शिप्रा त्रिपाठी, श्री पटेरिया, हेमसिंह राठौर, नीलकंठ शार्दूल, जमील रिजवी, नवनीत वैष्णव, उद्धव वैष्णव, सुदीप द्विवेदी आदि अनेक साहित्यानुरागी एवं साहित्यकार उपस्थित थे।

पुस्तक का मूल्य : 85.00 रुपये प्राप्ति स्थल : नेशनल बुक ट्रस्ट, इंडिया, नेहरू भवन 5, इंस्टीट्यूशनल एरिया, फेज-II, वसंत कुंज, नई दिल्ली-110070

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