Saturday, 30 March 2013

बल्ले पर बस्तर की संस्कृति : लोक चित्र के माध्यम से



लगभग पन्द्रह दिनों पहले मेरे अनुज खेम वैष्णव मुझे बताते हैं कि दिल्ली स्थित "आर्ट फॉर ऑल" नामक किसी संस्था ने कुम्हारपारा (कोंडागाँव) स्थित "साथी समाजसेवी संस्था" के अध्यक्ष भूपेश तिवारी के माध्यम से उनसे सम्पर्क किया है और आईपीएल 2013 के मैच के लिये दो बल्लों पर बस्तर के लोक चित्र उकेरने का प्रस्ताव रखा है। इसके साथ ही, मेरे ईमेल आईडी पर एक मेल आता है, जिसमें नमूने के तौर पर एक बल्ले के चार अलग-अलग कोणों से लिये गये चित्र होते हैं। उधर से बताया जाता है कि खेम बल्ले पर क्या उकेरेंगे, यह उन्हीं पर निर्भर करता है। संस्था इस विषय में कुछ भी नहीं कहेगी। खेम को यह बात जँच जाती है और वे योजना बनाते हैं, बस्तर की आदिवासी एवं लोक संस्कृति को दोनों बल्लों पर उकेरने की। दिन भर नगरपालिका परिषद् की नौकरी के बाद रात में आरम्भ होती है चित्रकारी। चार-पाँच दिनों की कड़ी मेहनत के बाद अन्तत: 19 मार्च की रात 01.30 बजे वे इसे पूरा कर पाते हैं और पैंकिंग कर इसी दिन सुबह 04.30 बजे रायपुर के लिये रवाना करते हैं ताकि टीसीआई के माध्यम से इन्हें दिल्ली भेजा जा सके।
इन दोनों बल्लों पर, जिनमें से एक की लम्बाई 5.5 फीट और दूसरे की लम्बाई लगभग 1.5 फीट है, खेम ने बस्तर की संस्कृति को चित्रित किया है। बस्तर की लोकचित्र-शैलियों में से एक "जगार शैली (गड़ लिखतो)" के लोकचित्रकार हैं खेम। इन बल्लों पर खेम ने बस्तर की आदिवासी एवं लोक-संस्कृति तथा जन-जीवन को प्रदर्शित किया है। वे कहते हैं, "बस्तर का आदिवासी एवं लोक समुदाय, जो पूरी तरह वन पर आश्रित है, अपने जीवन  के प्रत्येक पल को गीत-संगीत-नृत्य और आनन्द के साथ जीता है। उसके जीवन में भी कष्ट हैं, दु:ख हैं, पीड़ा है, लाल आतंक का साया भी है; किन्तु तो भी वह अपने में मस्त बना रहना नहीं छोड़ता। यह बस्तर की आदिवासी एवं लोक संस्कृति का एक बहुत महत्त्वपूर्ण पक्ष है। विपरीत और विषम परिस्थितियों में भी जीवन कैसे जिया जाये, यह आरम्भ से ही "पिछड़ा" कहे जाने को अभिशप्त बस्तर अंचल के वनवासियों-ग्रामवासियों से सीखा जा सकता है।"
वे आगे बताते हैं, "यों तो बस्तरिया लोगों के लिये समूचे वन ही जीवन-दाता हैं तथापि महुआ का विशेष महत्त्व है। कारण, यह वृक्ष जन्म से ले कर मृत्यु तक के सभी संस्कारों में बस्तरिया जन-जीवन से जुड़ा होता है। इसके फूल, फल, पत्ते, छाल यहाँ तक की शाखाएँ-प्रशाखाएँ, छोटी-बड़ी टहनियों और जड़ तक का उपयोग जीवन के विभिन्न अवसरों पर होता रहा है। विश्वप्रसिद्ध धातु शिल्पी जयदेव बघेल और सुप्रसिद्ध लौह शिल्पी सोनाधर विश्वकर्मा यदि इस वृक्ष को "जीवन वृक्ष" कहते हैं तो इसमें कोई संशय नहीं है। मेरी दृष्टि में भी यह वृक्ष जीवन-वृक्ष ही है।"
उन्हें इस लोकचित्रकारी की प्रारम्भिक शिक्षा माँ (स्व. जयमणि वैष्णव) से मिली। आगे चल कर गुरुमायों (जगार गायिकाओं) से भी उन्हें इस कला को आगे बढ़ाने में सहयोग मिला। खेम वैष्णव का संक्षिप्त परिचय इस तरह है :
जन्म : 31.07.1958, दन्तेवाड़ा (बस्तर-छत्तीसगढ़)।
पिता : श्यामदास वैष्णव।
माता : जयमणि वैष्णव।
शिक्षा : हायर सेकेण्डरी।
मूलत: लोक चित्रकार। साथ ही बस्तर के लोक संगीत एवं छायांकन में भी पर्याप्त दखल। लोक चित्रकारी की शुरुआत 1970-71 से। सम्पूर्ण कला-कर्म बस्तर पर केन्द्रित।
प्रदर्शनियाँ : जहांगीर आर्ट गैलरी (मुम्बई), डिस्कवरी ऑफ इण्डिया (मुम्बई), नेहरू सेन्टर (मुम्बई), कमलनयन बजाज गैलरी (मुम्बई), प्रिन्स ऑफ वेल्स म्यूजियम (मुम्बई), आल इण्डिया फाईन आर्ट्स एण्ड क्राफ्ट्स सोसायटी (नयी दिल्ली), इंजीनियरिंग इन्स्टीट्यूट ऑफ साइंस (बैंगलोर), सूरजकुण्ड क्राफ्ट्स मेला (हरियाणा), क्राफ्ट्स बाजार (माधापुर, हैदराबाद), क्राफ्ट्स मार्केट (गुवाहाटी, असम), क्राफ्ट्स मार्केट मीट (पणजी, गोवा), प्रिमिसेस ऑफ दी क्राफ्ट्स काउन्सिल फेस्टिवल (हैदराबाद), कोलकाता पार्क स्ट्रीट (कोलकाता), महन्त घासीदास संग्रहालय (रायपुर, छत्तीसगढ़), नेशनल फोकलोर सपोर्ट सेन्टर (चेन्नई), नारा सिटी (जापान)।
छत्तीसगढ़ विधान सभा भवन सौन्दर्यीकरण।
संग्रह : ऑस्ट्रेलिया, सं. रा. अमेरिका, जर्मनी, स्विट्जरलैंड, इंग्लैंड, जापान, फ्रान्स, न्यूजीलैंड, इटली, रूस, इजिप्त आदि देशों के कलाप्रेमियों/कला मर्मज्ञों के निजी संग्रह में।
सम्मान आदि : लोक चित्रकला के क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान के लिये 1997 में करवट कला परिषद्, भोपाल से "कला सम्मान"। दी राकेफेलर फाऊन्डेशन के आमन्त्रण पर 2002 में इटली प्रवास। देश की विभिन्न प्रतिष्ठित साहित्यिक पत्र-पत्रिकाओं एवं ग्रन्थों में रेखांकन एवं छायाचित्र। भारत शासन, संस्कृति विभाग के सांस्कृतिक स्रोत एवं प्रशिक्षण केन्द्र, नयी दिल्ली द्वारा पारम्परिक भित्ति चित्र के लिये "गुरु" की मान्यता। जहांगीर आर्ट गैलरी, मुम्बई द्वारा प्रकाशित समकालीन चित्रकला पर केन्द्रित "इंडियन ड्राइंग टुडे 1987" पुस्तक में स्थान। नेशनल फोकलोर सपोर्ट सेन्टर, चेन्नई द्वारा प्रकाश्य ""इन्साइक्लोपीडिया इण्डिका फॉर किड्स : कल्चर एण्ड इकोलॉजी"" के लिये बस्तर की 21 लोक कथाओं की चित्रमय प्रस्तुति। छत्तीसगढ़ राज्य वनौषधि बोर्ड द्वारा जबर्रा नामक गाँव में आयोजित कार्यशाला में भागीदारी। हैदराबाद के "हैदराबाद इन्टरनेशनल कन्वेन्शन सेन्टर (एचआईसीसी)" में आयोजित "इलेवन्थ मीटिंग ऑफ द कान्फ्रेन्स ऑफ द पार्टीज़ (एमओपी-5, सीओपी 11) टू द इन्टरनेशनल कन्वेन्शन ऑन बायोलॉजिकल डायवर्सिटी" में यूएनडीपी के प्रेक्षक के रूप में सहभागिता। यूएनडीपी के लिये बस्तर की वनौषधियों की उपयोगिता पर आधारित कैलेण्डर के लिये चित्रण। छत्तीसगढ़ राज्य युवा आयोग द्वारा "वरिष्ठ लोक चित्रकार" के रूप में सम्मानित।
सम्पर्क : सरगीपाल पारा, कोंडागाँव 494226, बस्तर-छत्तीसगढ़। मोबाइल : 99261-70261
ईमेल : hariharvaishnav@gmail.com











Tuesday, 12 March 2013

बस्तर बोल रहा है: लोक साहित्य लोक जागरुकता का प्रतीक है : डॉ. कौशलेन्द्र मिश्र

बस्तर बोल रहा है: लोक साहित्य लोक जागरुकता का प्रतीक है : डॉ. कौशलेन्द्र मिश्रhttp://www.facebook.com/harihar.vaishnav

लोक साहित्य लोक जागरुकता का प्रतीक है : डॉ. कौशलेन्द्र मिश्र


"बस्तर का लोक साहित्य यहाँ के आम लोगों के संघर्ष, मान्यताओं एवं समृद्ध ज्ञान का प्रतीक है। लिपि के विकास के बहुत पहले से ही यहाँ की बोलियों में तमिल, राजस्थानी, अरबी और कई अन्य भाषाओं के प्रभाव शामिल हो गये थे।" ये उद्गार व्यक्त किये डॉ. कौशलेन्द्र मिश्र ने, जो एक चिकित्साधिकारी व साहित्यानुरागी हैं। वे श्री लाला जगदलपुरी एवं हरिहर वैष्णव द्वारा सम्पादित एवं नेशनल बुक ट्रस्ट, इंडिया (मानव संसाधन विकास मंत्रालय, भारत सरकार) द्वारा प्रकाशित पुस्तक "बस्तर की लोक कथाएँ" के लोकार्पण अवसर पर पुस्तक की समीक्षा कर रहे थे। इस आयोजन में मुख्य अतिथि अंतर्राष्ट्रीय ख्यातिलब्ध शिल्पी डॉ. जयदेव बघेल और अध्यक्ष स्थानीय शिक्षाविद् टी. एस. ठाकुर थे। यह आयोजन नेशनल बुक ट्रस्ट ने छत्तीसगढ़ हिंदी साहित्य परिषद के सहयोग के किया था।


आगंतुकों का औपचारिक स्वागत करते हुए नेशनल बुक ट्रस्ट के संपादक पंकज चतुर्वेदी ने जानकारी दी कि उनका संस्थान पुस्तक पढ़ने की रुचि के उन्नयन के लिये किस तरह की गतिविधियों का आयोजन करता है। लोकार्पित पुस्तक पर समीक्षा प्रस्तुत करते हुए डॉ. कौशलेन्द्र मिश्र ने बताया कि अबुझमाड़ की लोक कथा रक्त-संबंधों में विवाह करने से उत्पन्न होने वाले विकारों की जिस तरह से जानकारी देती है, यह साक्ष्य है कि हमारी जनजातियों की मान्यताएँ बेहद पुरातन काल से वैज्ञानिक रही हैं। पुस्तक के संपादक हरिहर वैष्णव ने बताया कि किस तरह उन्होंने विभिन्न जनजातियों की लोक कथाओं को पहले रिकार्ड किया, फिर उन्हें लिखा, एक बार फिर वे उन्हीं बोलियों के लोगों के पास गये और उनका परिशोधन व अनुवाद उन्हीं की मदद से किया। बस्तर की लोक-संस्कृति तथा वाचिक परम्परा के संरक्षण, संवद्र्धन एवं विस्तार-कार्य के लिये उन्होंने अपनी सरकारी नौकरी से सेवानिवृत्ति भी ले ली।












इस अवसर पर बस्तर की पारम्परिक जड़ी-बूटी पद्धतियों को सहजने में लगे अंतर्राष्ट्रीय रूप से चर्चित वैज्ञानिक    डॉ. राजाराम त्रिपाठी ने बताया कि लोक संस्कृति के मामले में बस्तर दुनिया का सबसे धनी क्षेत्र है और यहाँ की रचनाएँ दुनिया की किसी भी भाषा में लिखे जा रहे सृजन से कमतर नहीं है। आयोजन के मुख्य अतिथि डॉ. जयदेव बघेल ने बताया कि किस तरह उनके पिताजी से सीखे पुश्तैनी ज्ञान को उन्होंने दुनिया भर में पहुँचाया। उन्होंने बताया कि बस्तर का शिल्प इंसान के जन्म से ले कर उसके अन्तिम संस्कार व उसके बाद भी कुछ ना कुछ अनिवार्य आकृतियाँ गढ़ता रहता है। कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे श्री टी. एस. ठाकुर ने इस आयोजन और पुस्तक के लिये नेशनल बुक ट्रस्ट के प्रति आभार व्यक्त करते हुए कहा कि भविष्य में भी ट्रस्ट इस आंचलिक क्षेत्र में अपनी गतिविधियों का आयोजन करता रहेगा। इस सत्र का संचालन पंकज चतुर्वेदी ने किया जबकि अंत में आभार ज्ञापन श्री सुरेन्द्र रावल ने किया।




भोजनावकाश के बाद आयोजन का दूसरा सत्र भी अपने में अनूठा था। इसमें हिंदी, उर्दू के साथ-साथ हल्बी, भतरी, छत्तीसगढ़ी और गोंडी आदि में रचनाओं का पाठ हुआ। जगदलपुर से आये रुद्रनारायण पाणिग्राही ने भतरी में मुर्गों की लड़ाई पर केन्द्रित अपनी व्यंग्य रचना "कुकड़ा गाली" प्रस्तुत की तो भतरी के ही दूसरे 

रचनाकार नरेन्द्र पाढ़ी (जगदलपुर) ने भी कुत्ता पालने पर अपनी व्यंग्य रचना "कुकुर स्वांग" से श्रोताओं का 
दिल जीत लिया। श्री हरेन्द्र यादव ने छत्तीसगढ़ी में एक छत्तीसगढ़ी लड़के से प्रणय-निवेदन कर रही विदेशी 
बाला के संवाद का हास्य अपनी रचना में पेश किया। आदिवासियों के चहुँमुखी शोषण को रेखांकित करती 
कविताएँ दुर्योधन मरकाम ने गोंडी में और यशवंत गौतम ने हल्बी में प्रस्तुत की। हयात रजवी की उर्दू शायरी ने खूब वाहवाही लूटी। इसके अलावा शिवकुमार पाण्डेय (नारायणपुर) ने हल्बी में गीत और सुरेश चन्द्र 
श्रीवास्तव (काँकेर) ने हिन्दी में समकालीन कविताओं का पाठ किया। अभनपुर से पधारे सुप्रसिद्ध ब्लॉगर 
ललित शर्मा ने छत्तीसगढ़ी में अपनी व्यंग्य रचना "जय-जय-जय छत्तीसगढ़ महतारी" का पाठ किया। अपनी अस्वस्थता के कारण कार्यक्रम में उपस्थित न रह सकने वाले बस्तर के दो वरिष्ठ रचनाकारों लाला जगदलपुरी एवं सोनसिंह पुजारी की हिंदी एवं हल्बी रचनाओं का पाठ हरिहर वैष्णव ने आदर के साथ किया। इस सत्र का संचालन किया श्री सुरेन्द्र रावल ने।
 
इस कार्यक्रम में मनोहर सिंह सग्गू, महेश पाण्डे, महेन्द्र जैन, खीरेन्द्र यादव, जमील अहमद खान, शिप्रा त्रिपाठी, बरखा भाटिया, लच्छनदई नाग, मधु तिवारी, बृजेश तिवारी, रामेश्वर शर्मा, श्री विश्वकर्मा, पीतांबर दास वैष्णव, खेम वैष्णव, उमेश मण्डावी, चितरंजन रावल, शिप्रा त्रिपाठी, श्री पटेरिया, हेमसिंह राठौर, नीलकंठ शार्दूल, जमील रिजवी, नवनीत वैष्णव, उद्धव वैष्णव, सुदीप द्विवेदी आदि अनेक साहित्यानुरागी एवं साहित्यकार उपस्थित थे।

पुस्तक का मूल्य : 85.00 रुपये प्राप्ति स्थल : नेशनल बुक ट्रस्ट, इंडिया, नेहरू भवन 5, इंस्टीट्यूशनल एरिया, फेज-II, वसंत कुंज, नई दिल्ली-110070