इन दोनों बल्लों पर, जिनमें से एक की लम्बाई 5.5 फीट और दूसरे की लम्बाई लगभग 1.5 फीट है, खेम ने बस्तर की संस्कृति को चित्रित किया है। बस्तर की लोकचित्र-शैलियों में से एक "जगार शैली (गड़ लिखतो)" के लोकचित्रकार हैं खेम। इन बल्लों पर खेम ने बस्तर की आदिवासी एवं लोक-संस्कृति तथा जन-जीवन को प्रदर्शित किया है। वे कहते हैं, "बस्तर का आदिवासी एवं लोक समुदाय, जो पूरी तरह वन पर आश्रित है, अपने जीवन के प्रत्येक पल को गीत-संगीत-नृत्य और आनन्द के साथ जीता है। उसके जीवन में भी कष्ट हैं, दु:ख हैं, पीड़ा है, लाल आतंक का साया भी है; किन्तु तो भी वह अपने में मस्त बना रहना नहीं छोड़ता। यह बस्तर की आदिवासी एवं लोक संस्कृति का एक बहुत महत्त्वपूर्ण पक्ष है। विपरीत और विषम परिस्थितियों में भी जीवन कैसे जिया जाये, यह आरम्भ से ही "पिछड़ा" कहे जाने को अभिशप्त बस्तर अंचल के वनवासियों-ग्रामवासियों से सीखा जा सकता है।"
वे आगे बताते हैं, "यों तो बस्तरिया लोगों के लिये समूचे वन ही जीवन-दाता हैं तथापि महुआ का विशेष महत्त्व है। कारण, यह वृक्ष जन्म से ले कर मृत्यु तक के सभी संस्कारों में बस्तरिया जन-जीवन से जुड़ा होता है। इसके फूल, फल, पत्ते, छाल यहाँ तक की शाखाएँ-प्रशाखाएँ, छोटी-बड़ी टहनियों और जड़ तक का उपयोग जीवन के विभिन्न अवसरों पर होता रहा है। विश्वप्रसिद्ध धातु शिल्पी जयदेव बघेल और सुप्रसिद्ध लौह शिल्पी सोनाधर विश्वकर्मा यदि इस वृक्ष को "जीवन वृक्ष" कहते हैं तो इसमें कोई संशय नहीं है। मेरी दृष्टि में भी यह वृक्ष जीवन-वृक्ष ही है।"
उन्हें इस लोकचित्रकारी की प्रारम्भिक शिक्षा माँ (स्व. जयमणि वैष्णव) से मिली। आगे चल कर गुरुमायों (जगार गायिकाओं) से भी उन्हें इस कला को आगे बढ़ाने में सहयोग मिला। खेम वैष्णव का संक्षिप्त परिचय इस तरह है :
जन्म : 31.07.1958, दन्तेवाड़ा (बस्तर-छत्तीसगढ़)।
पिता : श्यामदास वैष्णव।
माता : जयमणि वैष्णव।
शिक्षा : हायर सेकेण्डरी।
मूलत: लोक चित्रकार। साथ ही बस्तर के लोक संगीत एवं छायांकन में भी पर्याप्त दखल। लोक चित्रकारी की शुरुआत 1970-71 से। सम्पूर्ण कला-कर्म बस्तर पर केन्द्रित।
प्रदर्शनियाँ : जहांगीर आर्ट गैलरी (मुम्बई), डिस्कवरी ऑफ इण्डिया (मुम्बई), नेहरू सेन्टर (मुम्बई), कमलनयन बजाज गैलरी (मुम्बई), प्रिन्स ऑफ वेल्स म्यूजियम (मुम्बई), आल इण्डिया फाईन आर्ट्स एण्ड क्राफ्ट्स सोसायटी (नयी दिल्ली), इंजीनियरिंग इन्स्टीट्यूट ऑफ साइंस (बैंगलोर), सूरजकुण्ड क्राफ्ट्स मेला (हरियाणा), क्राफ्ट्स बाजार (माधापुर, हैदराबाद), क्राफ्ट्स मार्केट (गुवाहाटी, असम), क्राफ्ट्स मार्केट मीट (पणजी, गोवा), प्रिमिसेस ऑफ दी क्राफ्ट्स काउन्सिल फेस्टिवल (हैदराबाद), कोलकाता पार्क स्ट्रीट (कोलकाता), महन्त घासीदास संग्रहालय (रायपुर, छत्तीसगढ़), नेशनल फोकलोर सपोर्ट सेन्टर (चेन्नई), नारा सिटी (जापान)।
छत्तीसगढ़ विधान सभा भवन सौन्दर्यीकरण।
संग्रह : ऑस्ट्रेलिया, सं. रा. अमेरिका, जर्मनी, स्विट्जरलैंड, इंग्लैंड, जापान, फ्रान्स, न्यूजीलैंड, इटली, रूस, इजिप्त आदि देशों के कलाप्रेमियों/कला मर्मज्ञों के निजी संग्रह में।
सम्मान आदि : लोक चित्रकला के क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान के लिये 1997 में करवट कला परिषद्, भोपाल से "कला सम्मान"। दी राकेफेलर फाऊन्डेशन के आमन्त्रण पर 2002 में इटली प्रवास। देश की विभिन्न प्रतिष्ठित साहित्यिक पत्र-पत्रिकाओं एवं ग्रन्थों में रेखांकन एवं छायाचित्र। भारत शासन, संस्कृति विभाग के सांस्कृतिक स्रोत एवं प्रशिक्षण केन्द्र, नयी दिल्ली द्वारा पारम्परिक भित्ति चित्र के लिये "गुरु" की मान्यता। जहांगीर आर्ट गैलरी, मुम्बई द्वारा प्रकाशित समकालीन चित्रकला पर केन्द्रित "इंडियन ड्राइंग टुडे 1987" पुस्तक में स्थान। नेशनल फोकलोर सपोर्ट सेन्टर, चेन्नई द्वारा प्रकाश्य ""इन्साइक्लोपीडिया इण्डिका फॉर किड्स : कल्चर एण्ड इकोलॉजी"" के लिये बस्तर की 21 लोक कथाओं की चित्रमय प्रस्तुति। छत्तीसगढ़ राज्य वनौषधि बोर्ड द्वारा जबर्रा नामक गाँव में आयोजित कार्यशाला में भागीदारी। हैदराबाद के "हैदराबाद इन्टरनेशनल कन्वेन्शन सेन्टर (एचआईसीसी)" में आयोजित "इलेवन्थ मीटिंग ऑफ द कान्फ्रेन्स ऑफ द पार्टीज़ (एमओपी-5, सीओपी 11) टू द इन्टरनेशनल कन्वेन्शन ऑन बायोलॉजिकल डायवर्सिटी" में यूएनडीपी के प्रेक्षक के रूप में सहभागिता। यूएनडीपी के लिये बस्तर की वनौषधियों की उपयोगिता पर आधारित कैलेण्डर के लिये चित्रण। छत्तीसगढ़ राज्य युवा आयोग द्वारा "वरिष्ठ लोक चित्रकार" के रूप में सम्मानित।
सम्पर्क : सरगीपाल पारा, कोंडागाँव 494226, बस्तर-छत्तीसगढ़। मोबाइल : 99261-70261
ईमेल : hariharvaishnav@gmail.com