Tuesday 9 October 2012

व्यंग्य : आइये, "करप्शन डे" मनायें!


अरे ओ दुनिया वालो! अरे कभी हम "करप्ट" लोगों के बारे में भी तो सोचो। हमारे द्वारा की जा रही समाज-सेवा के बदले कभी तो हम लोगों को याद कर लिया करो। अरे भाई! रोज नहीं तो कम से कम साल में एक बार। आप लोग तो न जाने कौन-कौन से "डे" मनाते हैं, कैसे-कैसे लोगों को सम्मानित करते हैं और एक हम हैं कि बस टापते रह जाते हैं। अरे इतने सारे (365) "डे" में से एक "डे" हमारे नाम भी कर दोगे तो आपका क्या नुकसान हो जायेगा सर? नहीं, नहीं। आप ही बताइये सर कि क्या यह आप लोगों की नजरों में जायज है? क्या सर! एक के साथ माँ और दूसरे के साथ मौसी (सौतेली माँ) का व्यवहार किसी भी कोण से न्यायसंगत दिखता है क्या? सर, ये घरवाली-बाहरवाली का खेल हमारे साथ मत खेलिये। देखिये, जब आप "मदर्स डे" मना कर साल में एक बार अपनी माता पर अहसान कर देते हैं या "फादर्स डे" मना कर पिता पर, तब तो हम कुछ नहीं कहते। अच्छा है। चलो, इसी बहाने बेचारों को आप साल में एक बार तो याद कर लेते हैं। भले ही के साल के 364 दिन माँ-बाप की ऐसी-तैसी करते रहें किन्तु ठीक 365 वें दिन आपकी धमनियों में मातृ-पितृ भक्ति की गंगा-जमुनी धाराएँ प्रवाहित होने लगती हैं। बिल्कुल सही है। रोज-रोज भक्ति-धारा प्रवाहित होगी तो उसका अवमूल्यन हो जायेगा न, सर। इसीलिये साल में एक बार। बहुत अच्छी बात है, सर। वेरी गुड सर, वेरी गुड!
तो सर प्रत्येक "डे" का कोई न कोई मकसद अवश्य है, सर। जैसे, आप जब "चिल्ड्रन्स डे" मनाते हैं तो भगवान को भी यकीन हो जाता है कि बच्चे वाकई बहुत सुखी और प्रसन्न हैं। सर, यकीन पर तो दुनिया टिकी है, न! अब यह अलग बात है कि किनके बच्चे सुखी और प्रसन्न हैं और किनके नहीं। वैसे भी यह चर्चा का विषय नहीं है, सर। बहरहाल, इसी तरह जब आप "वेलेन्टाईन डे" मनाते हैं तो युवक-युवतियों को सरे आम प्रेम करने का लायसेन्स मिल जाता है, सर। लेकिन इसका यह मतलब नहीं कि वे साल भर एक-दूसरे को सरे आम प्रेम नहीं करते! करते हैं, किन्तु थोड़ी सी झिझक होती है सर, जो "वेलेन्टाईन डे" पर गधे के सिर से सींग की तरह पूरी तरह गायब हो जाती है। वे इस दिन अपने माता-पिता के सामने भी आपस में इस पवित्र कार्य को अन्जाम देने के लिये अनुमत होते हैं. सर। कुछ तो ऐसा ही करते हैं जबकि कुछ चले जाते हैं किसी "गार्डन" में और वहाँ रास-लीला रचाते हैं। इस "डे" का मकसद भी यही है सर। बड़ा बढ़िया मकसद है, सर। दिल गार्डन-गार्डन हो गया सर। क्या सर! अपने समय में यह सब क्यों नहीं था, सर? 
और इधर "फ्रेंडशिप डे" नामक एक और "डे" का आयात हो गया है सर। तो क्या बाकी दिनों सब एक-दूसरे के दुश्मन रहे आये हैं, सर और इसी एक दिन वे "फ्रेंड" हो जाते हैं? शायद ऐसा ही। केवल एक दिन के फ्रेंड? पता नहीं सर। और सर एक जो बड़ा जबरदस्त "डे" है न सर, वह मुझे बड़ा आतंकित करता है, सर। जी सर, वही "बड्डे"। अरे सर, यह "डे" साल में एक बार नहीं आता, सर। यह तो रोज ही आता है। आज मेरा, कल आपका, परसों उसका और नरसों मेरे, आपके या उसके बाप का। फिर आगे बेटे-बेटी का, नाती-पोतों का। इस तरह यह सिलसिला पूरे साल भर चलता रहता है, सर। तो सर, यह बड़ा प्राणलेवा "डे" होता है। कारण, इससे मेरा प्रत्येक महीने का बजट गड़बड़ा जाता है, सर। और अब तो यह जो "डे" है न सर, यह तो शहरों और कस्बों की सीमा लांघ कर सुदूर गाँवों तक में पहुँच चुका है, सर। 
सॉरी सर, मैं अपने मूल विषय से हटता चला जा रहा हूँ। एक मिनट सर। जरा बाथरूम से हो कर आ लूँ सर फिर मुद्दे की बात करेंगे। आप भी हो आइये सर। टेन्शन में रहेंगे तो बात नहीं बनेगी, सर। अच्छा, सर। ठीक है, सर। चलिये मैं ही हो आता हूँ, सर। हाँ तो सर, मैं आपसे निवेदन करने जा रहा था कि इतने सारे "डेज़" में से एक "डे" हमारे नाम भी कर दें, सर। भगवान आपका भला करेगा, सर। दूधो नहाओगे पूतो फलोगे, सर। और यदि आपने ऐसा कर दिया सर, तो भगवान की कसम! सच कहता हूँ, सर! यह तो आपका क्रान्तिकारी कदम होगा सर! किसी बात में अपना देश आगे रहे न रहे, किन्तु एक जिस बात में यह सबसे आगे है उसी के नाम पर एक "डे" समर्पित कर आप दुबारा दुनिया के नक्शे में इस महादेश को नम्बर वन पर ला सकते हैं, सर। इतिहास में आपका यह काम स्वर्ण अक्षरों में लिखा जायेगा सर। सर, सर, सर! जी सर। यस सर! सही समझा आपने, सर! जी सर, वही "करप्शन डे" सर। नहीं, यदि मैंने कुछ गलत कहा तो बतायें, सर। जी सर। सर! यह क्या कह रहे हैं, सर? इतने बड़े देश में मुझ जैसे भ्रष्टाचारियों की क्या कमी है, सर? हम लोग बहुसंख्यक हैं, सर। तो सर, इस वर्ष से हमारे नाम पर "करप्शन डे" का ऐलान कर ही दीजिये, सर। क्या है कि हम लोगों ने अपना संघ बना लिया है, सर। और हमारे संघ ने सर्वसम्मति से तय किया है कि यदि आपने अभी और आज ही "करप्शन डे" की घोषणा नहीं की तो अगला चुनाव आपको भारी पड़ सकता है, सर। जी सर! नहीं सर। कोई परेशानी नहीं होगी, सर। सब-कुछ ठीक-ठाक हो जायेगा, सर। आप निश्चिन्त रहें, सर। मैं सब सम्हाल लूँगा, सर। बस! आपका आशीर्वाद चाहिये, सर। जी सर, आप तो जल्दी से जल्दी से इस "डे" की घोषणा कर दीजिये, सर। और फिर सर, आप भी तो हमारे ही कुनबे के हैं, सर। जी सर, इसमें राष्ट्रीय सम्मान की भी व्यवस्था हो, सर। कम से कम पाँच लाख रुपये तो सम्मान-स्वरूप दिये ही जाने चाहिये, सर। शाल-श्रीफल की आवश्यकता नहीं सर। पाँच लाख मिल जायेंगे तो स्वयं ही खरीद लेंगे, सर। उससे कम में तो यह सम्मान नहीं बल्कि अपमान ही होगा न, सर! "डे" की घोषणा होते ही हम लोग प्रस्ताव पारित कर पहला सम्मान आप ही को दिलवायेंगे, सर। आप निश्चिन्त रहें, सर। इसमें कोई बेईमानी नहीं होगी, सर। आखिर सर, चोर-चोर मौसेरे भाई या एक ही थैली के चट्टे-बट्टे जैसी कहावतें यों ही तो नहीं बनी हैं न, सर! और सर, हम लोगों का तो सिद्धान्त भी है सर, बेईमानी में भी ईमानदारी। देखा जाये तो हम लोगों से ज्यादा ईमानदार कोई होता नहीं सर। कारण, बाकी लोग ईमानदारी में बेईमानी करते हैं जबकि हम लोग बेईमानी में भी ईमानदारी! हम लोग एक्स्ट्राआर्डिनरी होते हैं, सर। और इसमें किसी को रत्ती-माशा भर भी संशय नहीं सर। बाकी आप स्वयं समझदार हैं, सर। आपको विस्तार से समझाने की तो जरूरत ही नहीं है, सर। 
जी, क्या कहा सर? जी सर। आपका यह तर्क तो बिल्कुल सही है, सर। तो फिर क्या किया जाये सर? जी फार्मूला? जी सर, बोलिये सर। मैं सुन रहा हूँ, सर। जी, जी। जी सर। यस सर। सर, सर, सर। एक्सीलेन्ट सर! अमेज़िंग..! तो ठीक है सर। ऐसा ही कर लीजिये सर। इससे कोई झंझट भी नहीं होगी सर और सबको अपना हक मिल जायेगा, सर। जी सर। तो सर, एक "डे" की जगह कई "डेज़" का ही फार्मूला ठीक है, सर। जी सर। दस "डेज़"? ठीक है सर। सही है सर। सन्तुष्टिकरण की नीति आवश्यक है, सर। जी सर। सारे के सारे "डेज़" मैं अभी सुझा देता हूँ सर, बाकी बताने को कल रहूँ न रहूँ। सर मैं न रहूँ तो मुझे मरणोपरान्त तो देंगे न, सर? जी सर, नोट कर लें सर। एक तो होगा सर "बोफोर्स घोटाला डे", दूसरा "चारा घोटाला डे", तीसरा "चावल घोटाला डे", चौथा "बारदाना घोटाला डे", पाँचवाँ "स्टाम्प घोटाला डे", छठवाँ "चीनी घोटाला डे", सातवाँ ....। जी सर? जी अच्छा, सर। ठीक है, सर। "घोटाला डेज़" की श्रृंखला में फिलहाल इतने का ही समावेश कर लेते हैं सर, और जैसी कि आपकी मन्शा है; अन्य विधाओं से जुड़ी प्रतिभाओं के लिये "रैपिस्ट्स डे", "किलर्स डे", "रॉबर्स डे" और सामान्य श्रेणी में "करप्शन डे" को सम्मिलित कर लेते हैं। इस अन्तिम श्रेणी में उन सभी महानुभावों को सम्मिलित किया जायेगा जो ऊपर वर्णित श्रेणी के क्राइटेरिया में न आते हों किन्तु जिनका अन्य महत्त्वपूर्ण रचनात्मक अवदान भुलाया भी न जा सके? ठीक है, सर। बिल्कुल ठीक है, सर। जी सर? एक और आइडिया आपके दिमाग में कौंध रहा है सर? जी सर। जैसा आप चाहें सर। अच्छा सर, इन सभी महानुभावों को उपाधियों से भी विभूषित किया जाये? जी सर। एकदम सुपर-डुपर आइडिया है सर। उपाधियाँ होंगी घोटालाश्री, घोटाला विभूषण, घोटालाभूषण, बलात्कारीश्री, हत्याराश्री, चोट्टाश्री, भ्रष्टाचारीविभूषण आदि इत्यादि। जी सर? आप और गलत निर्णय लें? नहीं सर, नहीं। यह न तो कभी हुआ है और न कभी होगा, सर! न भूतो न भविष्यति! सर, आप तो बहुत बड़े जीनियस हैं सर! आपका बहुत-बहुत धन्यवाद सर। नमस्कार सर। मेरा मतलब है, प्रणाम सर।


4 comments:

  1. एक्सीलेन्ट सर! अमेज़िंग..! एक "डे" की जगह कई "डेज़" का ही फार्मूला ठीक है, सर। जी सर। दस "डेज़"? एकदम सुपर-डुपर आइडिया है सर जी जितनी जल्दी से जल्दी हो सके इन "डेज़" को सम्मिलित किया जाना चाहिए... सचमुच जवाब नहीं आपके इस व्यंग का

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  2. बिलकुल सही है सारे डेज़ मनाते हैं तो इन मुख्य " डेज़ " को क्यों छोड़ दिया जाये, आजकल इन्ही का बोलबाला है... वेरी गुड आइडिया सरजी

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  3. आपका सुझाव पसंद आया. क्यों न कांग्रेस के स्थापना दिवस को ही करप्शन डे घोषित कर दिया जाये.

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  4. Pasand apnii-apnii, khayaal apnaa-apnaa.

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