स्वतन्त्रता दिवस के पावन अवसर पर देश-वासियों को विलम्बित हार्दिक बधाई। तकनीकी कारणों से पोस्ट विलम्बित हुआ। अत: इस विलम्बित बधाई के लिये अत्यन्त विनम्रता पूर्वक क्षमा-याचना सहित प्रस्तुत है बस्तर के रचनाकारों के 02 गीत।
दरअसल मैं चाहता था कि दोनों गीतों को सस्वर भी प्रस्तुत किया जाये किन्तु लगातार कोशिशों के बाद भी मेरी अज्ञानतावश ऐसा नहीं हो सका। बहरहाल, प्रस्तुत हैं ये गीत "टेक्स्ट" के ही रूप में :
01. क्यूँ रक्त बह रहा है?
02. स्वातन्त्र्य गीत
इसमें से पहले गीत "क्यूँ रक्त बह रहा है" के रचयिता हैं श्री राजेन्द्र राव "राजन"। उनके पिता स्व. गोविंद राव द्वितीय विश्व युद्ध के सैनिक रहे थे। माता का नाम था स्व. सुशीला राव। उनका जन्म 11 मार्च 1966 को कोंडागाँव (बस्तर-छ.ग.) में हुआ था। कला स्नातक श्री राव पेशे से सरस्वती शिशु मन्दिर, कोंडागाँव में शिक्षक के रूप में वर्षों से पदस्थ हैं। वे मूलत: लोक संगीतकार तथा लोक चित्रकार हैं। बस्तर के सुप्रसिद्ध लोक चित्रकार एवं लोक संगीतकार मेरे अनुज श्री खेम वैष्णव उनके कला-गुरु हैं। इसके साथ ही वे हिन्दी तथा बस्तर की लोक भाषा "हल्बी" में गीत लिखते रहे हैं। गायन में भी उन्हें महारत हासिल है। उन्हें लोक चित्रकारी का राज्य स्तरीय सम्मान 02 अक्टूबर 1997 में प्राप्त हो चुका है। इसके साथ ही, उन्हें 1992 में सृजन नाट्य सम्मान (आगरा, उ. प्र.), 1992 में रिसाली नाट्य महोत्सव सम्मान (भिलाई, छ.ग.), 1993 में पाटलिपुत्र सम्मान (पटना, बिहार) एवं 2012 में छत्तीसगढ़ लोक सेवा समिति सम्मान से नवाजा जा चुका है।
प्रस्तुत है उनका गीत :
"क्यूँ रक्त बह रहा है" :
क्यूँ रक्त बह रहा है, मेरे देश-वासियो,
जागो! उठो! जवानो! मेरे देश-वासियो।
ये सूर्य की है लालिमा, या प्यार का संदेश
जो आज तक यहाँ था, वो जा बसा विदेश
क्याँ खोदते हो खाई, मेरे देश-वासियो।
जागो! उठो! जवानो! मेरे देश-वासियो।।
पल में उजड़-उजड़ गया, जो था चमन कभी
रोता हुआ माली यहाँ, गुजर गया अभी
फिर से चमन महकाओ, मेरे देश-वासियो।
जागो! उठो! जवानो! मेरे देश-वासियो।।
इतिहास याद कर लो, ये वक्त है तुम्हारा
दिखला दो राम बन कर, यह देश है हमारा
पहुँचा दो उस क्षितिज तक, संदेश वासियो।
जागो! उठो! जवानो! मेरे देश-वासियो।।
दूसरा गीत "स्वातन्त्र्य गीत" इस नाचीज़ का है :
स्वतन्त्रता का गान यह,
चिरकाल तक चलता रहे।
यह शहीदों की धरोहर
हो अमर इस गान का स्वर,
देश पर अभिमान का
यह भाव नित पलता रहे।
इस धरा के मान का
संज्ञान हमको हो सदा,
देश से अनुराग का
यह दीप नित जलता रहे।
देश पर ना आ सके
विपदा कभी हम ठान लें,
देश पर बलिदान का
यह राग नित चलता रहे।
बढिया गीत हैं,श्री राजेन्द्र राव "राजन" से परिचय कराने के लिए आभार। कभी कोंडागांव आए तो जरुर मिलेगें आपके सौजन्य से।
ReplyDeleteMahoday, aap to mere blog guru hain. Aaaiye, Kondagaon mein aapkaa swaagat hai.
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