Wednesday 14 October 2015

"हल्बी भाषा, साहित्य एवं संस्कृति" पर 30-31 अक्टूबर को दो दिवसीय आयोजन जगदलपुर में

"हल्बी भाषा, साहित्य एवं संस्कृति" पर 30-31 अक्टूबर को दो दिवसीय आयोजन जगदलपुर में

30-31 अक्टूबर को "साहित्य अकादेमी", नयी दिल्ली और "बस्तर विश्वविद्यालय", जगदलपुर के सहयोग से "बस्तर विश्वविद्यालय जगदलपुर, धरमपुरा, बस्तर-छत्तीसगढ़" में बस्तर सम्भाग की प्रमुख लोक भाषाओं में द्वितीय स्थान रखने वाली लोक भाषा, जो रियासत-काल में राज-काज की भी भाषा रही है और यहाँ की सम्पर्क भाषा का भी दर्जा प्राप्त "हल्बी" से सम्बन्धित "हल्बी भाषा, साहित्य एवं संस्कृति" पर केन्द्रित दो दिवसीय संगोष्ठी का गरिमामय आयोजन होने जा रहा है।
इस आयोजन के कार्यक्रम निम्नानुसार हैं :

शुक्रवार, 30 अक्टूबर 2015

उद्घाटन सत्र : पूर्वाह्न 10.00 बजे - 11.30 बजे
स्वागत : के. श्रीनिवासराव, सचिव, साहित्य अकादेमी
उद्घाटन वक्तव्य : एन. डी. आर. चन्द्रा, कुलपति, बस्तर विश्वविद्यालय
   
पुस्तक लोकार्पण :

हरिहर वैष्णव की पुस्तक "लछमी जगार" (गुरुमाय केलमनी द्वारा प्रस्तुत बस्तर की धान्य-देवी की महागाथा, मूल हल्बी, हिन्दी अनुवाद के साथ)
सोनसिंह पुजारी की पुस्तक "अन्धकार का देश" (हल्बी के अन्यतम कवि की मूल हल्बी कविताएँ हिन्दी अनुवाद के साथ)
(दोनों ही पुस्तकों के प्रकाशक : साहित्य अकादेमी, नयी दिल्ली)

बीज वक्तव्य : महेंद्र कुमार मिश्र, वाचिक और जनजातीय साहित्य के विद्वान
अध्यक्षीय वक्तव्य : विश्वनाथ प्रसाद तिवारी, अध्यक्ष, साहित्य अकादेमी
विशिष्ट अतिथि : रामसिंह ठाकुर, सुप्रसिद्ध हल्बी कवि
धन्यवाद ज्ञापन : अन्विता अब्बी, निदेशक, वाचिक और जनजातीय साहित्य केन्द्र, साहित्य अकादेमी

प्रथम सत्र : मध्याह्न 12.00 बजे - 1.30 बजे

अध्यक्ष : हरिहर वैष्णव
आलेख : यशवंत गौतम/हल्बी का लिखित साहित्य : दशा एवं दिशा
विक्रम सोनी/हल्बी का भाषा वैज्ञानिक पक्ष एवं लिपि
शिवकुमार पाण्डेय/हल्बी और छत्तीसगढ़ी में अंतर्संम्बंध
बलदेव पात्र/हल्बी और हल्बा संस्कृति
खेम वैष्णव/हल्बी परिवेश में लोक चित्र-परम्परा

द्वितीय सत्र : अपराह्न 2.30 बजे - 4.30 बजे

अध्यक्ष : महेंद्र कुमार मिश्र
आलेख : सुभाष पाण्डेय/हल्बी रंगमंच : कल, आज और कल
बलबीर सिंह कच्छ/हल्बी लोक संगीत की दशा एवं दिशा
नारायण सिंह बघेल/हल्बी परिवेश के लोक-नृत्य
रुद्रनारायण पाणिग्राही/हल्बी परिवेश के त्यौहार एवं उत्सव
रूपेन्द्र कवि/मानव विज्ञान की दृष्टि में हल्बा जनजाति

तृतीय सत्र : अपराह्न 5.00 बजे - 6.00 बजे
कहानी पाठ : एम. ए. रहीम
शोभाराम नाग

शनिवार, 31 अक्टूबर 2015

चतुर्थ सत्र : पूर्वाह्न 11.00 बजे - 1.30 बजे
कविता पाठ : सोनसिंह पुजारी
जोगेन्द्र महापात्र "जोगी"
शकुंतला तरार
नरेन्द्र पाढ़ी
सिकंदर खान "दादा जोकाल"
अर्जुन नाग
तुलसी राम पाणिग्राही
बालकिशोर पाण्डे
गिरिजानन्द सिंह ठाकुर
घनश्याम सिंह नाग
हरिहर वैष्णव
डी. एस. बघेल

लोक : विविध स्वर : अपराह्न 2.30 बजे - 6.00 बजे
लछमी जगार/मुँडागाँव के कलाकारों की प्रस्तुति
गीति कथा/मारेंगा गाँव के कलाकारों की प्रस्तुत
खेल गीत/सिंगनपुर गाँव के कलाकारों की प्रस्तुति
लोक नृत्य/माता रुक्मणि सेवा संस्था की प्रस्तुति

अत्यन्त विनम्रतापूर्वक निवेदन करना चाहूँगा कि बस्तर की "पहचान" केवल कुछ देशी-विदेशी लेखकों-पत्रकारों-मानवविज्ञानियों या संस्कृतिकर्मियों के अनुसार "घोटुल" ही नहीं है। उस बेतुके पहचान से उबरने और बस्तर की वास्तविक पहचान पाने के लिये आपको इस कार्यक्रम में अवश्य ही शिरकत करना चाहिये, ऐसा मेरा मानना है।
उपर्युक्त कार्यक्रमों पर नज़र डालने पर आप पायेंगे कि "हल्बी भाषा, साहित्य एवं संस्कृति" पर यह निश्चित ही अपनी तरह का एक अनूठा आयोजन है। मैं इसके लिये साहित्य अकादेमी, विशेष तौर पर इस अकादेमी के "वाचिक एवं जनजातीय साहित्य केन्द्र" की निदेशक प्रख्यात भाषा विज्ञानी और पद्मश्री से अलंकृत आदरणीया प्रो. (श्रीमती) अन्विता अब्बी जी का हृदय से आभारी हूँ। आभारी हूँ शोध-छात्र चिरंजीव श्री अजय कुमार सिंह (लखनऊ) का भी जिनके माध्यम से मैं आदरणीया प्रो. अब्बी जी से जुड़ सका। आभारी हूँ, अकादेमी के सचिव आदरणीय श्री के. श्रीनिवासराव जी और अध्यक्ष आदरणीय श्री विश्वनाथ प्रसाद तिवारी जी का भी, जिन्होंने इस कार्यक्रम में अपनी सक्रिय सहभागिता दर्ज कराने की स्वप्रेरित इच्छा जतायी और यही कारण है कि यह कार्यक्रम अप्रैल में होते-होते रह गया और अब 30-31 अक्टूबर को इन महानुभावों की गरिमामयी उपस्थिति में होने जा रहा है। आभार बस्तर विश्वविद्यालय के कुलपति आदरणीय श्री एन. डी. आर चन्द्र जी का भी, जिन्होंने इस कार्यक्रम के आयोजन में सहभागिता दर्ज कराने की सहर्ष सहमति अकादेमी को दे कर हम बस्तरवासियों पर उपकार किया है। मुझे आशा है कि अकादेमी और इसका वाचिक एवं जनजातीय साहित्य केन्द्र हल्बी के साथ ही यहाँ की तमाम लोकभाषाओं के प्रति भी ऐसा ही स्नेह बनाये रखेगा और आगे उन पर केन्द्रित कार्यक्रम भी आयोजित करेगा।
उल्लेखनीय है कि पिछले वर्षों में राष्ट्रीय पुस्तक न्यास, भारत, नयी दिल्ली द्वारा इस न्यास में संपादक माननीय श्री पंकज चतुर्वेदी जी के अथक प्रयासों से बस्तर की भतरी, हल्बी, गोंडी और दोरली लोक भाषाओं पर कार्यशालाएँ आयोजित हो चुकी हैं। इनमें से कुछ पुस्तकों का प्रकाशन हो चुका है और कुछ पुस्तकों के प्रकाशन का काम जारी है। मैं ऐसे सभी रचनात्मक आयोजनों का हृदय से स्वागत करता हूँ और सभी के प्रति अपना आभार व्यक्त करता हूँ।
क्या आप नहीं चाहेंगे कि इस कार्यक्रम में, जिसे मैं एक "पवित्र अनुष्ठान" कहना चाहूँगा, अपनी उपस्थिति दर्ज करा कर हल्बी भाषा, साहित्य एवं संस्कृति के बहाने "बस्तर" की आत्मा को बूझें। उसके विषय में जानें, उसे समझें और आत्मसात् करें?


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