आज एक बहुत बड़ी खुशी आप सब साथियों के साथ बाँटने का मन बना कर उपस्थित हुआ हूँ। पिछले आठ वर्षों से जारी मेहनत अब जा कर रंग लाने को है। वरिष्ठतम साहित्यकार 92 वर्षीय लाला जगदलपुरी जी के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर तैयार पाण्डुलिपि "साहित्य-ऋषि लाला जगदलपुरी : लाला जगदलपुरी समग्र" शीर्षक से प्रकाशन जगत में मील का पत्थर साबित होने जा रहे दिल्ली के यश प्रकाशन से पुस्तक रूप में शीघ्र ही प्रकाशित हो कर आपके-हमारे बीच होगी। यह कम्पोज की जा चुकी है और इसके प्रूफ रीडिंग का काम जारी है। कुल 582 पृष्ठों में समायी इस सामग्री का प्रकाशन दो भागों में होने जा रहा है। पहले भाग में लाला जी का व्यक्तित्व पक्ष है तो दूसरे भाग में उनका चुनिन्दा गद्य तथा समग्र पद्य साहित्य। सहयोगी लेखकों में सम्मिलित हैं प्रो. (डॉ). धनंजय वर्मा, राम अधीर, लक्ष्मीनारायण "पयोधि", निर्मला जोशी, त्रिलोक महावर, डॉ. देवेन्द्र दीपक, त्रिभुवन पाँडेय, डॉ. रामकुमार बेहार, जयप्रकाश राय, रऊफ परवेज़, डॉ. सुरेश तिवारी, आई. जानकी, अवध किशोर शर्मा, संजीव तिवारी, केवल कृष्ण, प्रो. बी. एल. झा, सुरेन्द्र रावल, डॉ. राजेश सेठिया, राजीव रंजन प्रसाद, डॉ. रूपेन्द्र कवि, चितरंजन रावल, योगेन्द्र देवांगन, जगदीश दास, महावीर अग्रवाल, के. एल. श्रीवास्तव, उमाशंकर तिवारी और डॉ. हबीब राहत "हुबाब"।
बहुत प्रसन्न्ता का विषय है कि हरिहर वैष्ण्व जी ने " साहित्य ऋषि लाला जगदलपुरी: लाला जगदलपुरी समग्र " लिखकर , लाला जगदलपुरी जी के साहित्य को , जन-जन तक पहुँचाने का मंगलमय
ReplyDeleteयज्ञ सम्पन्न किया है , उनका यह कार्य स्तुत्य है । उन्हें अशेष शुभकामनायें सम्प्रेषित करती हूँ ।
This comment has been removed by the author.
ReplyDeleteAabhharii hun.
Deleteशीर्षक में 'समग्र' और विवरण में 'चुनिंदा', क्यों है, समझ नहीं सका. बहरहाल, प्रसन्नता हो रही है, शुभकामनाएं.
ReplyDeleteप्रकाशन के समाचार से आप प्रसन्नता का अनुभव कर रहे हैं। स्वाभाविक है। श्रद्धेय लालाजी से आपका मानसिक जुड़ाव आपको यह प्रसन्नता प्रदान कर रहा है। आभार।
ReplyDeleteशीर्षक में "समग्र" वस्तुत: सही नहीं है, यह मैं मानता हूँ। कारण, समग्र का अर्थ ही हुआ "सब कुछ"। दरअसल लालाजी का गद्य साहित्य इतना विपुल है कि यदि हम उनकी केवल दो किताबों ("बस्तर : इतिहास एवं संस्कृति" तथा "बस्तर लोक : कला-संस्कृति प्रसंग") को भी यथावत् सम्मिलित कर लें तो प्रस्तुत पुस्तक की पृष्ठ संख्या डेढ़ से दो हजार हो जायेगी। इसीलिये चुनिंदा गद्य साहित्य ही, जिसमें केवल पाँच या सात आलेख और लोक कथाएँ सम्मिलित हैं। इसके बावजूद इसकी पृष्ठ संख्या 582 हो गयी है और यह दो खण्डों में आ रही है। परमपिता परमेश्वर ने चाहा तो आगे "समग्र" का भी प्रकाशन सम्भव हो पायेगा।
पुन: आभार।